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नहीं रहे ‘ट्री मैन’ जगदीश महतो  ‘अंतिम जोहार’

 

कसमार (बोकारो)। जंगल बचाने के लिए अपनी जिन्दगी को दांव पर लगाने वाले और सरकार द्वारा ‘ट्री मैन’ के रूप में सम्मानित जगदीश महतो (75 वर्ष) अब हमारे बीच नहीं रहे। रविवार सुबह उन्होंने पैतृक आवास हिसीम में अंतिम सांसें ली। सूचना पाकर सैकड़ों शुभचिंतकों का तांता अंतिम दर्शन को लग गया। चचेरे भाई सुनील महतो, मनोज महतो और सरोज महतो ने शव को कंधा दिया। अंतिम संस्कार गांव के श्मशान घाट में हुआ। आइग मुखिया चचेरा भतीजा अरूण कुमार महतो बने है। जगदीश ने अपने पीछे दो पत्नियां मिला देवी (65) एवं माया देवी (50) तथा गोद ली हुई पुत्री लक्ष्मी कुमारी (15) को छोड़ गये।

अंतिम दर्शन हेतु पूर्व विधायक लंबोदर महतो, शिक्षाविद जगदीश महतो, जिप सदस्य अमरदीप महाराज, यदुनंदन जायसवाल, तपन झा, विष्णु चरण महतो, सुलेमान अंसारी, गंगाधर महतो, जब्बार अंसारी, सूरज महतो, धनेश्वर महतो, राधा सोरेन समेत वन बचाओ आंदोलन में संघर्ष के साथी रहे तमाम लोग पंहुचे।

मामा घर संग्रामपुर प्राथमिक  विद्यालय ली थी पांचवीं शिक्षा 

जगदीश महतो ने प्रारंभिक शिक्षा अपने मामा घर रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड स्थित संग्रामपुर सरकारी प्राथमिक विद्यालय से प्राप्त की। उसके बाद माध्यमिक शिक्षा कसमार प्रखंड के हरनाद हाई स्कूल से प्राप्त किया। उनकी दो पत्नियां थीं दोनों की संतान नहीं होने पर उन्होंने एक बच्ची लक्ष्मी कुमारी को गोद लिया।‌ और पेड़ों से नाता जोड़ लिया। उन्होंने हर वर्ष रक्षा बंधन के दिन पेड़ों को रक्षासूत्र बांध कर वन बचाने की अनोखी परंपरा की भी शुरुआत की थी।‌

इईइझारखंड सरकार ने ट्री मैन की दी थी उपाधी 

2023 में जगदीश महतो को ट्री मैन के रूप में उपाधि देकर सम्मानित किया था। तत्कालीन राज्यपाल राधाकृष्णन एवं विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो के हाथों झारखंड ट्री मैन के रूप में उपाधि देकर सम्मानित किया था।

‘ट्री मैन’ ने जंगल बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी। वनों की सुरक्षा को लेकर देशभर में अपनी पहचान बनाने वाले जगदीश महतो पिछले 40 सालों से इस अभियान में जुटे हुए थे। इस दौरान वे वन माफियाओं ने कई बार हमले में बाल-बाल बचे, जबकि जंगल बचाने के लिए पत्नी के गहने और खेत भी बेचना पड़ा। लेकिन उन्होंने आंदोलन को जिंदा रखा। बोकारो समेत झारखंड के एक बड़े भू- भाग पर हुए वन पर्यावरण सुरक्षा आंदोलन के नायक बने है।

कड़े संघर्षों का करना पड़ा था सामना 

आंदोलन के दौरान इन्होंने कई कड़े संघर्षों का सामना किया। इस आंदोलन को जिंदा रखने के लिए इन्होंने अपना सबकुछ बेच दिया। खेत-मवेशी यहां तक की अपनी पत्नी के गहने भी। यही नही इस आंदोलन के विरोधियों ने इनपर इतना जुल्म किया कि उन्होंने इन्हें अपना मूत्र तक पीने को भी मजबूर किया। वन तस्करों ने कई बार इनपर जानलेवा हमला भी किया। परन्तु इन्होंने कभी हिम्मत नही हारी। सभी मुश्किलों और बाधाओं से लड़ते हुए अपने मिशन को आगे बढ़ाते रहे।

कुल्हाड़ी के विरोध ने जगदीश को बनाया नायक

जगदीश महतो का करवा धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया और कुछ ही दिनों में इनका जंगल बचाओ आंदोलन पूरे उत्तरी छोटानागपुर में फैल गया। इस दौरान इन्होंने करीब साढ़े चार सौ गांव मे ग्राम स्तरीय वन सुरक्षा समितियों का गठन कर सबको इस आंदोलन से जोड़ दिया। हज़ारों महिला-पुरुष जंगल को बचाने का संकल्प ले डटकर इनके साथ खड़े हो गए।

1984 में वन सुरक्षा आंदोलन की शुरुआत

हिसीम के केदला पहाड़ पर वन सुरक्षा आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1984 में हुई। इस पहाड़ पर मुख्य रूप से चार गांव बसे हुए है, जहां काफी बड़ा इलाका वन क्षेत्र है। लेकिन धीरे- धीरे वन तस्करों के कारण इस क्षेत्र में जंगल कटने लगे। जब एक बार कुल्हाड़ी चलने की शुरुआत हुई तो फिर थमने का नाम ही नही लिया। कुछ स्थानीय ग्रामीणों के वन माफियाओं के साथ मिले होने के कारण यहां के जंगल पूरी तरह उजड़ चुके थे।

ग्रामीण कुल्हाड़ी के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हुए

जंगल को कटते देख ग्रामीणों ने बैठक कर यह निर्णय लिया कि अगर पेड़ों की कटाई को रोकी नही गई, तो ग्रामीण पर्यावरण के गम्भीर संकट झेलने को मजबूर होंगे। फिर सभी ग्रामीण जंगलों में चल रहे कुल्हाड़ी के खिलाफ एकजुट हो खड़े हो गए। ग्रामीणों की पहली बैठक हिसीम गांव के मध्य विद्यालय परिसर में अक्टूबर 1984 में हुई थी। बैठक में कुल्हाडी आंदोलन के लिए एक समिति का गठन किया गया। हर हाल में वनों की सुरक्षा का निर्णय लिया गया। उस वक्त समिति के अध्यक्ष बनाये गए थे विष्णुचरण महतो, लेकिन कुछ दिनों बाद उन्होंने आंदोलन की बागडोर जगदीश महतो को सौंप दी लेकिन आंदोलन से जुड़े रहे।

जगदीश महतो के प्रयास से आंदोलन का विस्तार

जगदीश महतो के हाथों में आंदोलन की बागडोर आते ही जंगल बचाओ अभियान ने ऐसी गति पकड़ी कि आसपास के कई गावों के ग्रामीण इस आंदोलन के साथ जुड़ गए। आंदोलन का विस्तार होता चला गया। ग्रामीणों के जुड़ते-जुड़ते गांवों की संख्या 450 पार कर गई।

अब भी जिन्दा है कुल्हाड़ी आंदोलन

आज भी कुल्हाडी आंदोलन ज़िंदा है। जगदीश महतो पिछले तीन दशक से वन सुरक्षा आंदोलन के अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी संभाल रखी है। इसी आंदोलन का असर है कि आज हिसीम केदला और उसके आसपास के गांव में हरियाली लौटी आई है। पूरा इलाका अब जंगलों से भरा पड़ा है।

 

 

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