झामुमो सोरेन गुट से महासचिव शैलेन्द्र महतो रखे थे पक्षकार तो मार्डी गुट से राजकिशोर महतो ने रखा था पक्ष
बोकारो आजतक डेस्क
1992 में झारखंड मुक्ति मोर्चा दो गुटों में विभाजित हो गया था। उस दौरान झामुमो के पास 6 सांसद और 19 विधायक थे। पार्टी विभाजन के बाद एक का नाम झामुमो (सोरेन ग्रुप), जिसके पक्ष में चार सांसद और 10 विधायक आए। दूसरा झामुमो (मार्डी ग्रुप) के पक्ष में दो सांसद और नौ विधायक थे। झामुमो (मार्डी ग्रुप) ने 1994 में पार्टी चुनाव चिन्ह तीर धनुष पर दावा पेश किया। मामला भारत निर्वाचन आयोग (Election commission of India) में पहुंचा।
चुनाव आयोग से शिबू सोरेन को नोटिस मिला। उस समय टीएन सेशन मुख्य चुनाव आयुक्त थे। शिबू सोरेन पार्टी के अध्यक्ष तथा शैलेन्द्र महतो महासचिव थे। जो जमदेशपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी चुने गये थे। शैलेन्द्र महतो ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर लिखते हैं कि उन्हें शिबू सोरेन ने कहा था कि तुम पढ़ते लिखते हो इसलिए यह मामला तुमको संभालना है और सारा काम शैलेन्द्र महतो पर सौंप दिया। चूंकि शैलेन्द्र महतो पार्टी का महासचिव थे इसलिए जिम्मेदारी बनती थी। चुनाव आयोग के नोटिस को लेकर वे सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट/अधिवक्ता अमरेन्द्र शरण के पास पहुंचे और उनसे कानूनी सलाह लिया। (बाद के दिनों में वे भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल बने थे )। उनके सलाहनुसार शैलेन्द्र महतो ने काम शुरू किया। अधिवक्ता अमरेंद्र शरण की फीस पचास हजार रूपये थी। शैलेन्द्र महतो बताते हैं कि उन्हेंने अपने खाता से ₹50000 का चेक अधिवक्ता को दिया था।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति में 125 सदस्य थे और कार्यकारिणी में 25 सदस्य। अब सवाल उठा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा विभाजन होने के बाद केंद्रीय समिति और केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्यों में कौन किस ग्रुप में हैं, इसका एफिडेविट के साथ स्पष्ट ब्योरा चुनाव आयोग ने मांगा था। तीर धनुष बचाना चिन्ह को बचाने के लिए शैलेन्द्र महतो को कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी। विभिन्न जिलों से झामुमो सदस्यों का लगभग 6000 एफिडेविट इकट्ठा कर चुनाव आयोग में जमा करना पड़ा था। इसके साथ-साथ केंद्रीय समिति के 125 सदस्यों में 86 सदस्य और केंद्रीय कार्यकारिणी के 25 सदस्यों में 18 सदस्य ने झामुमो (सोरेन ग्रुप) के पक्ष में एफिडेविट देकर समर्थन किया।
6 सांसदों में चार सांसद और 19 विधायकों में 10 विधायक झामुमो (सोरेन ग्रुप) के पक्ष में अपना एफिडेविट दिया।
भारत निर्वाचन आयोग (नई दिल्ली) में मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन सेशन के कोर्ट में झामुमो (सोरेन ग्रुप) का पक्ष रखने के लिए शैलेन्द्र महतो ने पार्टी का सारा कागजात अपने अधिवक्ता अमरेंद्र शरण को मुहैया कराया। जवाब दाखिल करने के लिए पार्टी महासचिव के हैसियत से सभी कागजात में हस्ताक्षर करना किया था।
दूसरी ओर झामुमो (मार्डी) के महासचिव राजकिशोर महतो उपस्थित हुए। उनके ओर से सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता रोक्सना स्वामी (पूर्व कानून मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी की पत्नी) थी। टीएन सेशन के कोर्ट में दोनों पक्ष से जोरदार बहस हुई। पार्टी के केंद्रीय समिति, केंद्रीय कार्यकारिणी समिति, सांसदों और विधायकों का बहुमत झामुमो (सोरेन) के पक्ष में था। अतः पार्टी में झामुमो (सोरेन ग्रुप)का बहुमत सिद्ध होने पर चुनाव आयोग का फैसला झामुमो (सोरेन ग्रुप) के पक्ष में हुआ और चुनाव चिन्ह तीर- धनुष फिर से झामुमो (सोरेन ग्रुप) को मिल गया। पार्टी का नाम पूर्व की भांति सिर्फ झारखंड मुक्ति मोर्चा रह गया और सोरेन ग्रुप नाम हट गया।

