
शहीद नीलांबर और पीतांबर का बलिदान झारखंड के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक गौरवशाली अध्याय है : रवीन्द्र पांडेय
नीलांबर-पीतांबर की युद्ध रणनीति के आगे अंग्रेजी सेना भी पस्त थी: भोला भोगता
तेनुघाट स्थित शहीद पार्क में स्वतंत्रता सेनानी नीलांबर-पीतांबर की 167 वें शहादत दिवस पर दी गई श्रद्धांजलि
तेनुघाट/बेरमो (बोकारो) । बेरमो अनुमंडल मुख्यालय तेनुघाट स्थित शहीद पार्क में शुक्रवार को स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद नीलांबर-पीतांबर की 167वें शहादत दिवस पर शहादत दिवस समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से सूबे के पेयजल एवं स्वच्छता तथा उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री योगेंद्र प्रसाद महतो एवं गिरिडीह के पूर्व सांसद रवीन्द्र कुमार पांडेय शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने नीलाम्बर-पीताम्बर की आदमकद प्रतिमा पर पुष्पाजंलि अर्पित कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
मौके पर पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री श्री महतो ने वीर शहीदों के बलिदान को याद करते हुए कहा कि नीलाम्बर और पीताम्बर केवल दो नाम नहीं हैं, बल्कि वे स्वाभिमान, संघर्ष और स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। जब अंग्रेजी हुकूमत अपने अन्यायपूर्ण कानूनों और शोषणकारी नीतियों से अत्याचार कर रही थी, तब इन वीर सपूतों ने विद्रोह का बिगुल फूंका। उन्होंने अपने समाज के हक और सम्मान के लिए संघर्ष किया और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दे दी। उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि अन्याय के सामने झुकना नहीं चाहिए, बल्कि संगठित होकर उसका प्रतिकार करना चाहिए।
कार्यक्रम में मौजूद गिरिडीह के पूर्व सांसद रवीन्द्र पांडेय ने कहा कि नीलांबर और पीताम्बर का बलिदान झारखंड के स्वतंत्रता के इतिहास में एक गौरवशाली अध्याय है और वे आज भी आदिवासी समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
बोकारो जिला भोगता समाज के अध्यक्ष भोला भोगता ने कहा कि शहीद नीलांबर-पीताम्बर वीर स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने महज 35 साल की आयु में 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ाई लडकर अपनी जान दे दी थी। दोनों भाई खरवार जनजाति के भोगता समुदाय के थे। जिनका जन्म गढवा लातेहार जिले के चेमो- सान्या गांव में हुआ था। उनके पिता चेमा गांव के जागीरदार थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन हमेशा नाकाम रही। अंत में कर्नल डाल्टन ने धोखे से एक भोज के दौरान दोनों को पकडा लिया और संक्षिप्त मुकदमा चलाने के बाद 28 मार्च 1859 को पलामू के लेस्लीगंज में दोनों भाइयों को फांसी पर लटका दिया। बाद में उनके संपत्ति भी अंग्रजों ने जब्त कर ली।
कहा कि 1857 की क्रांति के दौरान जब देश के कई हिस्सों में विद्रोह कमजोर पड़ गया था। नीलांबर और पीताम्बर ने पलामू क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाकर संघर्ष जारी रखा। उन्होंने भोगता, खरवार और चेरो समुदाय को एकजुट कर अंगेजी हुकूमत के खिलाफ संगठित विद्रोह किया। उनकी विरता और रण कौशल ने अंग्रेजों को परेशान कर दिया था। 
मौके पर झामुमो के पूर्व जिला उपाध्यक्ष मनोहर मुर्मू, पेटरवार प्रखंड अध्यक्ष कृष्णा महतो, गोमिया प्रखंड अध्यक्ष लुदू मांझी, बेरमो प्रखंड अध्यक्ष रंजीत महतो, भोगता समाज के अध्यक्ष भोला भोगता, हीरालाल भोगता, पुरन भोगता, सुरेश भोगता, सेवा गंझू, शकील राज, मिथलेश महतो आदि मौजूद थे।
