1987 में आदिवासी टोले में आग लगा दिया था महाजनों ने

 

 

 

अगजनी घटना की सूचना पाकर पंहुचे थे शिबू सोरेन, तत्कालीन गिरिडीह डीसी ने खूद आकर लिया था घटना की संज्ञान.

 

 

महाजनों द्वारा भोले-भाले आदिवासियों को सूद के जाल में फांसकर हड़प ली जा रही थी उपजाऊ युक्त जमीनें.

 

 

 

 

Bokaro :  दिशोम गुरु शिबू सोरेन के साथ महाजनों के शोषण और अत्याचार के खिलाफ आंदोलन करने पर 1987 में बोकारो जिले के जरीडीह प्रखंड अंतर्गत चिलगड़ा निवासी रामा मांझी के घर समेत गांव के सभी आदिवासी घरों को महाजनों द्वारा आग के हवाले कर दिया गया था। जब शिबू सोरेन को यह जानकारी मिली तो वे फौरन चिलगड़ा गांव पंहुचे। तत्कालीन गिरीडीह जिला के डीसी भी स्वयं चिलगड़ा पहुंचकर घटना की जानकारी ली। डीसी ने खूद रामा मांझी को बुलाकर घटना के बारे विस्तृत जानकारी ली। रामा मांझी और सुंदरो निवासी भावसिंह मांझी बताते हैं कि गिरिडीह डीसी ने त्वरित कार्रवाई करते हुए महाजनों द्वारा हड़पी गयी आदिवासियों की जमीनों को भू-वापसी की प्रकिया को 15 दिनों में पूरी कर आदिवासियों को पट्टा सौंप दिया था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

साहुकारों द्वारा आदिवासियों को सूद के जाल में फांसकर उलझा दिया जाता

 

 

 

 

उस वक्त चिलगड़ा, बेलडीह, सुंदरो, गोपालपुर, पथुरिया, जादगोडीह, बिरसाड़म, तिलैया आदि दर्जनों आदिवासी बहुल गांवों में महाजनों द्वारा साजिश के तहत भोले-भाले आदिवासियों को पहले सूद के जाल में फंसाने के बाद इस कदर उलझा दिया जाता था कि उनका सूद के चंगुल से निकलना बहुत मुश्किल था। फिर महाजनों की गिद्ध नजर होती थी आदिवासियों के बढ़िया उपजाऊ -उपजाऊ खेतों को हड़पने पर। सूद के जाल में बुरी तरह फंसे आदिवासी जब पैसा वापस करने में असमर्थ होते तो साहुकार महाजनों द्वारा दबाव बनाकर उनके खेतों को हड़प कर जोत लिया जाता। बाद में महाजनों द्वारा पैसे के प्रभाव पर अवैध तरीके से आदिवासियों के उन जमीनों को अपने नाम रजिस्ट्री पट्टा भी बना लिया जा रहा था। जबकि सीएनटी एक्ट 1908 के अनुसार आदिवासियों की जमीनें सामान्य जाति के लोगों को खरीदने पर प्रतिबंधित थी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

शिबू सोरेन के आवाह्न पर धान कटनी आंदोलन में हुए थे शामिल

 

 

 

 

रामा मांझी बताते हैं कि गुरूजी शिबू सोरेन के आवाह्न पर आदिवासियों द्वारा उनके खेतों में उगाये फसलों को महाजनों द्वारा ले जाने पर डुगडुगी बजाकर सड़कों पर ही रोकर लूटकर वापस उस किसान को किये जाने लगे। हड़पे गये आदिवासियों के खेतों में महाजनों द्वारा लगाये गये धान फसल को आदिवासियों द्वारा काटा जाने लगा था। इससे खार खाये साहुकार महाजनों ने सन् 1987 में चिलगड्डा में उनके समेत 25 आदिवासी घऱों का आग के हवाले कर दिया था। वे आगे बताते हैं कि साहुकारों का शोषण ऐसा था कि अनपढ़ आदिवासियों को बेवकूफ बनाते हुए बढ़ा चढ़ाकर मूलधन की राशि अपने खाते में लिखी जाती थी। उसके अनुसार सूद की राशि भी मनमुताबिक बढ़ाकर

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