पहले शिलान्यास या भूमि-पूजन, या दोनों एक साथ, आइये समझते हैं!

बोकारो जिले के ख़ासकर गोमिया विधानसभा क्षेत्र में जनप्रतिनिधियों द्वारा एक ही सरकारी योजनाओं का दो-दो बार नींव रखी जा रही है। कोई पहले शिलान्यास के नाम पर बोर्ड लगाकर नारियल फोड़ते हैं तो कोई बाद में भूमि पूजन का बोर्ड लगाकर निर्माण कार्य की शुरुआत करते हैं। ऐसी स्थिति कई योजनाओं में देखी जा रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा बृहत रूप से सामुहिक कार्यक्रम आयोजन कर कई योजनाओं का एक साथ आनलाईन शिलान्यास किया गया था। बावजूद इसके तत्कालीन स्थानीय विधायक लंबोदर महतो के द्वारा कार्य स्थल में पुनः अपने नाम बाॅर्ड लगाकर भूमि पूजन किया गया था। विधानसभा चुनाव के सप्ताह या महिने भर पूर्व भी विधायक लंबोदर महतो ने कई योजनाओं का शिलान्यास आनन-फानन में किया था। अब जब वे चुनाव हार गये और योगेंद्र महतो विधायक और मंत्री बने गये, तो अब फिर वही योजनाओं का भूमि-पूजन कर रहे हैं। 

शिलान्यास और भूमि-पूजन क्या एक ही है?

नहीं, शिलान्यास और भूमि-पूजन दो अलग-अलग हिंदी शब्द हैं, और इनका अर्थ पूरी तरह एक नहीं है, हालांकि दोनों का संबंध किसी निर्माण कार्य या परियोजना की शुरुआत से होता है। आइए,  ग्रोक के अनुसार इनके अर्थ और अंतर को विस्तार से समझते हैं:

 1. शिलान्यास:

अर्थ: शिलान्यास का शाब्दिक अर्थ है “नींव का पत्थर रखना” (शिला = पत्थर, न्यास = स्थापना)। यह एक औपचारिक कार्य है जिसमें किसी भवन, मंदिर, या अन्य संरचना की नींव में पहला पत्थर या ईंट रखी जाती है, जो निर्माण की शुरुआत का प्रतीक होता है।

प्रसंग: शिलान्यास आमतौर पर तब किया जाता है जब निर्माण कार्य शुरू होने के लिए तैयार हो और नींव खोद ली गई हो। यह एक प्रतीकात्मक और तकनीकी कदम है, जो निर्माण की शुरुआत को चिह्नित करता है।

उदाहरण: किसी मंदिर, स्कूल, या पुल के निर्माण की शुरुआत में शिलान्यास समारोह आयोजित किया जाता है, जिसमें अक्सर कोई विशिष्ट व्यक्ति (जैसे नेता, संत, या गणमान्य व्यक्ति) नींव का पत्थर रखता है।

2. भूमि पूजन:

अर्थ: भूमि पूजन का अर्थ है “भूमि की पूजा करना”। यह एक धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें निर्माण शुरू करने से पहले भूमि को शुद्ध किया जाता है और उसकी पूजा की जाती है। यह कार्य भूमि को पवित्र मानकर और उस पर निर्माण की सफलता के लिए आशीर्वाद मांगने के लिए किया जाता है।

प्रसंग: भूमि पूजन हिंदू परंपरा में बहुत महत्वपूर्ण है और इसे निर्माण शुरू करने से पहले किया जाता है। इसमें मंत्रोच्चार, हवन, और अन्य धार्मिक रीति-रिवाज शामिल हो सकते हैं। यह अनुष्ठान यह सुनिश्चित करता है कि भूमि पर कोई नकारात्मक प्रभाव न हो और निर्माण कार्य सुचारु रूप से पूरा हो।

उदाहरण: किसी घर, मंदिर, या कारखाने के निर्माण से पहले भूमि पूजन किया जाता है, जिसमें पंडित द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है।

मुख्य अंतर

 शिलान्यास और भूमि पूजन का अर्थ एक नहीं है, लेकिन दोनों एक-दूसरे से संबंधित हो सकते हैं। कई बार दोनों कार्य एक ही दिन या समारोह में किए जाते हैं, खासकर धार्मिक या सांस्कृतिक महत्व के निर्माण में।

उदाहरण के लिए:

पहले भूमि पूजन करके भूमि को शुद्ध किया जाता है और आशीर्वाद लिया जाता है।

फिर शिलान्यास करके नींव का पहला पत्थर रखा जाता है, जो निर्माण की औपचारिक शुरुआत होती है।

निष्कर्ष:

शिलान्यास और भूमि पूजन का उद्देश्य और संदर्भ अलग है। भूमि पूजन एक धार्मिक अनुष्ठान है, जो निर्माण से पहले होता है, जबकि शिलान्यास एक प्रतीकात्मक कदम है, जो निर्माण की शुरुआत को चिह्नित करता है। हालांकि, दोनों का उपयोग अक्सर एक साथ या निकट समय में देखा जाता है, खासकर भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक परियोजनाओं में।

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