छोटानागपुर (झारखंड, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा) के कुड़मि और यूपी-बिहार के कुर्मी के बीच अंतर को विभिन्न जनगणनाओं और विद्वानों के शोध के आधार पर साफ-साफ और संक्षेप में स्पष्ट किया गया है। दोनों समुदायों के बीच आसमान-जमीन का अंतर है, और इन्हें एक समुदाय मानना गलत है।
1. नृवंशीय और ऐतिहासिक उत्पत्ति:
कुड़मि:
छोटानागपुर के कुड़मि स्वयं को आदिवासी या प्रोटो-आदिवासी मूल का मानते हैं, जिसमें द्रविड़ या ऑस्ट्रो-एशियाटिक प्रभाव हो सकता है। विद्वान जैसे एच. डालटन (“Descriptive Ethnology of Bengal”, 1872) और सर एच. एच. रिजले (“The Tribes and Castes of Bengal”, 1891) ने कुड़मि को छोटानागपुर के मूल निवासियों, जैसे मुंडा और ओरांव, से सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से निकट माना।
जनगणना साक्ष्य: ब्रिटिश काल की 1913 और 1931 की जनगणनाओं में कुड़मि को “आदिम जनजाति” (Primitive Tribe) के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। हालांकि, 1950 की स्वतंत्र भारत की जनगणना में इन्हें गलती से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल कर लिया गया, जिसके खिलाफ कुड़मि समुदाय आज भी अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की माँग करता है।
कुर्मी:
यूपी-बिहार के कुर्मी स्वयं को आर्य या क्षत्रिय मूल का मानते हैं और हिंदू वर्ण व्यवस्था में कृषक जाति के रूप में स्थापित हैं। रिजले ने कुर्मी को मैदानी क्षेत्रों की हिंदू संस्कृति से पूरी तरह एकीकृत माना, जिनकी उत्पत्ति वैदिक परंपराओं से जुड़ी है।
जनगणना साक्ष्य: ब्रिटिश और स्वतंत्र भारत की जनगणनाओं में कुर्मी को लगातार OBC या मध्यवर्ती कृषक जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया। इन्हें कभी भी आदिवासी या जनजाति के रूप में नहीं माना गया।
अंतर: कुड़मि की आदिवासी उत्पत्ति और क्षेत्रीय मूल उन्हें कुर्मी की वैदिक और हिंदू पृष्ठभूमि से पूरी तरह अलग करता है।
2. सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाएँ:
कुड़मि:
कुड़मि सरना धर्म या प्रकृति-पूजा का पालन करते हैं, जिसमें पवित्र जंगलों (सरणा) की पूजा और आदिवासी रीति-रिवाज शामिल हैं। उनके त्योहार जैसे कर्मा, सरहुल, और जदुर नृत्य छोटानागपुर के आदिवासी समुदायों से मिलते-जुलते हैं।
डब्ल्यू. सी. लेशी जैसे विद्वानों ने नोट किया कि कुड़मि की सामाजिक संरचना और विवाह प्रथाएँ (जैसे स्वतंत्र गोत्र प्रणाली) आदिवासी परंपराओं से प्रभावित हैं, न कि हिंदू कर्मकांडों से।
कुर्मी:
कुर्मी हिंदू धर्म के वैदिक और पुराणिक रूप का पालन करते हैं। उनके त्योहार जैसे दीवाली, होली, और छठ पूजा मैदानी क्षेत्रों की हिंदू संस्कृति को दर्शाते हैं।
रिजले और अन्य ने कुर्मी की पूजा पद्धतियों को ब्राह्मणवादी प्रभावों से युक्त माना, जो कुड़मि की प्रकृति-केंद्रित पूजा से बिल्कुल भिन्न है।
अंतर: कुड़मि की आदिवासी और प्रकृति-केंद्रित संस्कृति कुर्मी की हिंदू और वैदिक परंपराओं से पूरी तरह अलग है।
3. भाषा और बोली:
कुड़मि:
कुड़मि मुख्य रूप से कुरमाली बोली बोलते हैं, जो द्रविड़ और इंडो-आर्यन भाषाओं का मिश्रण है। इसमें “हार्ड र” (कुड़मि) का उच्चारण प्रमुख है। कुछ क्षेत्रों में सदरी या खोरठा भी बोली जाती है।
एच. हटन ने कुरमाली को छोटानागपुर की आदिवासी बोलियों से निकटता वाली माना, जो इसकी विशिष्टता को दर्शाता है।
कुर्मी:
कुर्मी भोजपुरी, मैथिली, या मगही बोलते हैं, जो पूरी तरह इंडो-आर्यन भाषाएँ हैं। इनमें “सॉफ्ट र” (कुर्मी) का उच्चारण होता है।
ये बोलियाँ मैदानी क्षेत्रों की हिंदू संस्कृति और साहित्य से प्रभावित हैं।
अंतर: कुरमाली और कुड़मि की बोलियों का आदिवासी प्रभाव कुर्मी की इंडो-आर्यन बोलियों से बिल्कुल अलग है।
4. सामाजिक और राजनीतिक स्थिति:
कुड़मि:
कुड़मि छोटानागपुर में सामाजिक और आर्थिक रूप से सीमित प्रभाव रखते हैं और अपनी ST दर्जे की माँग को लेकर संघर्षरत हैं। उनकी सामाजिक संरचना समतावादी और आदिवासी समुदायों से मिलती-जुलती है।
जनगणना भ्रम: ब्रिटिश दस्तावेजों में “कुड़मि” और “कुर्मी” को एक ही नाम से लिखने के कारण भ्रम पैदा हुआ, लेकिन रिजले और डालटन ने स्पष्ट किया कि कुड़मि की आदिवासी पहचान अलग है।
कुर्मी:
यूपी-बिहार में कुर्मी सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं, जैसे बिहार में नीतीश कुमार जैसे नेताओं के उदाहरण से स्पष्ट है। वे OBC के रूप में स्थापित हैं और हिंदू समाज में एकीकृत हैं।
कुर्मी ने कभी भी आदिवासी दर्जे की माँग नहीं की।
अंतर: कुड़मि की आदिवासी पहचान और ST माँग कुर्मी की OBC स्थिति और हिंदू समाज में प्रभाव से बिल्कुल भिन्न है।
5. विद्वानों और जनगणना का निष्कर्ष:
सर एच. एच. रिजले: कुड़मि को छोटानागपुर के आदिवासी समुदायों से निकट माना और उनकी प्रकृति-पूजा, भाषा, और सामाजिक संरचना को कुर्मी से अलग बताया।
एच. डालटन: कुड़मि की द्रविड़ या आदिवासी उत्पत्ति और उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं को कुर्मी की हिंदू परंपराओं से भिन्न माना।
डब्ल्यू. सी. लेशी: कुड़मि को आदिवासी और गैर-आदिवासी पहचानों के बीच एक विशिष्ट समुदाय के रूप में देखा, जो कुर्मी की मुख्यधारा हिंदू पहचान से अलग है।
जनगणना: 1913 और 1931 में कुड़मि को जनजाति के रूप में मान्यता दी गई, जबकि कुर्मी को हमेशा कृषक जाति माना गया। 1950 के बाद कुड़मि को OBC में शामिल करने से विवाद उत्पन्न हुआ, जो उनकी आदिवासी पहचान को कमजोर करता है।
अंतिम निष्कर्ष:
छोटानागपुर (झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा) के कुड़मि और यूपी-बिहार के कुर्मी के बीच आसमान-जमीन का अंतर है। कुड़मि की आदिवासी उत्पत्ति, सरना धर्म, कुरमाली बोली, और ST दर्जे की माँग उन्हें कुर्मी की हिंदू-आर्य पहचान, वैदिक परंपराओं, भोजपुरी-मैथिली बोलियों, और OBC स्थिति से पूरी तरह अलग करती है। विद्वान (रिजले, डालटन, लेशी) और ब्रिटिश जनगणनाएँ (1913, 1931) इस अंतर को स्पष्ट रूप से स्थापित करते हैं। ब्रिटिश दस्तावेजों में नामों का भ्रम इस अंतर को मिटा नहीं सकता।
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